बुधवार, 27 जनवरी 2010

हाशिया...!

याद है ना!
एक हाशिया होता था!
इसके उस पार लिखा तो
कट जाते थे नंबर
इम्तेहान में !

एहतियात के लिए
हर कोई
कॉपी मिलते ही ,
हर पन्ने पर
खींच देता था हाशिया !
और फिर शुरू करता था
लिखना |

लेकिन ये तो आदत सी ही पड़ गई !

हाँ !
ज़िन्दगी एक किताब है !
मानता हूँ मैं,
और ये भी
कि जीवन एक इम्तेहान !

मगर,
हाशिया ना हो
ज़िन्दगी में गर !
तो क्या
हो जायेंगे फेल !

क्यों हमेशा खींच देते हैं
हम,
एक हाशिया ज़िन्दगी में !
और जीते रहते हैं
उसके एक तरफ !
सोचते भी नहीं कभी
क्या होगा दूसरी तरफ !

सच बताऊँ !
मैंने तो
छोड़ दिया था
बहुत पहले ही
हाशिया खींचना !
इम्तेहान की कॉपी में|

पर अब
ना जाने क्यों
मजबूर होता हूँ अक्सर, खुद ही
ज़िन्दगी में
खींचने को हाशिया!

नही हो सकती क्या ?
जिन्दगी,
हाशिये के उस पार !

------------ निपुण पाण्डेय "अपूर्ण"

8 टिप्पणियाँ:

V बुधवार, 27 जनवरी 2010 को 11:01:00 pm IST बजे  

हाशिये के बगैर जीया जरूर जा सकता है, अगर वे लोग मान जायें जो इन हाशियों के सृजन करने वाले हैं, वही लोग हमें हाशियों के साथ जीने की आदत भी दल्वातें हैं| सवाल यह है की आपके अन्दर हाशिये की लाकिर को मिटाने का कितना जज्बा है...

Udan Tashtari गुरुवार, 28 जनवरी 2010 को 12:39:00 am IST बजे  

हाशिये के माध्यम से बहुत गहरी बात कह गये आप!! वाह!

कडुवासच गुरुवार, 28 जनवरी 2010 को 6:20:00 am IST बजे  

पर अब
ना जाने क्यों
मजबूर होता हूँ अक्सर, खुद ही
ज़िन्दगी में
खींचने को हाशिया!
..... behad prabhaavashaalee abhivyakti !!

अमिताभ श्रीवास्तव गुरुवार, 28 जनवरी 2010 को 3:14:00 pm IST बजे  

pahli baat nipunji,
hashiya jeevan kaa bahut gahra darshan hota he. adhyatmik darshan shastra kahtaa he ki jeevan ka haashiya hame hamesha yah samjhata he ki apni buraiyo ko us aor fenkate rhiye, fir doosari baat ki hashiye jeevan ko saleeke se chalane ke liye hote he..thik usi tarah jis tarah ham kaagaz par ek seedh me sundar dikhe va lage isake liye hashiya banate he..jeevan me salikaa nhi hoga to ank katenge hi.../ hashiya hamara ek sanvidhaan hota he. aazaad hone ka matlab yah nahi ki kuchh bhi kiya jaaye. samajhe na. kher..
rachna achhi he, soch aour vichaar ke maayane me umda...kintu sikke ke do pahalu to hote hi he..aour use nazarandaaz nahi kiya jaanaa chahiye.

दिगम्बर नासवा बुधवार, 3 फ़रवरी 2010 को 5:31:00 pm IST बजे  

बहुत गहरी बात ......... हांशिया बहुत ज़रूरी है उम्र में ........... जिस के पीछे छिप कर जिंदगी को दुबारा देख सके ....... बहुत अच्छा लिखा है ...........

कविता रावत रविवार, 21 फ़रवरी 2010 को 5:05:00 pm IST बजे  

याद है ना!
एक हाशिया होता था!
इसके उस पार लिखा तो
कट जाते थे नंबर
इम्तेहान में !
Hashiya ko madhyam banakar sundar prabhavkari rachna ke liye badhai

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