बुधवार, 24 जून 2009

पहली वर्षा............

पवन एक मदमस्त आई
मेघ को तब याद आई
गगन का अभिमान टूटा
धरा को वरदान जैसा

प्यासी पड़ी कुम्हला गई थी
व्याकुल जमीं ऐसी हुई थी
जब मेघ गर्ज़न कर उठे
फिर विटप पादप खिल उठे

धरा कुछ यूँ मुस्कुराई
अमृतमयी जब फुहार आई
घनन घन घन मेघ गरजे
झिमिर झिम झिम फिर जो बरसे

कुछ इस तरह से जब हुआ
वर्षा का पहला आगमन
वो था बरसता ही गया
मन ये बहकता ही गया

टिप टिप थी हर सू हो रही
हर ओर बूंदे झर रही
नृत्य करता सा मगन था
तृप्त अब हर इक नयन था

मस्त सी जब रुत ये आई
हिय की कली फ़िर खिलखिलाई
मन बाँवरा सा हो रहा
अब झूमता ही जा रहा |

----------------------------- निपुण पाण्डेय "अपूर्ण "

Read more...

मंगलवार, 23 जून 2009

मुझको ले चल उड़ा..........

आज सुबह तकरीबन ३ बजे खिड़की पे बैठा हुआ था ......भीनी भीनी सी हवा बह रही थी ...कुछ झकझोर गई मन को और बहुत दिनों बाद कुछ पंक्तियाँ बन गई ......



सोंधी सोंधी हवा,
भीनी भीनी हवा,
प्यारी प्यारी सी हौले सुनो
सरगम गाती हवा,

मुझको छूती चले
रेशमी सी लगे
तार मन के हिले
कुछ कहे कुछ सुने
मनचली सी हवा
भीनी भीनी हवा

अम्बर में छाए जब
मेघा काले निराले मेघा ,
यूँ तू बहने लगी
कुछ तू कहने लगी ,
आस मन में मेरे
फिर से जगने लगी ,
और अब ना सता
मुझ को ले चल उड़ा ,
चुलबुली सी हवा
भीनी भीनी हवा ,

नभ में देखो जरा
चाँद है छुप रहा
तारे दिखते नहीं
मेघा बहके से हैं
परदा सब पे किए,
बहकी तू भी लगे
क्या तू गाती चले
गीली गीली हवा
भीनी भीनी हवा

ऐसा भीगा सा
मौसम है आया
राग मन में
उमंगो का छाया
चाहता हूँ उड़ूं ,
मैं भी बहता फिरूं
साथ ले चल मुझे
अपने संग ऐ हवा

बारिशों को लिए
उड़ती आई चली
भीगे तन मन मेरा
बांवरा बन चला,
ख्वाब सोये हुए
अब हैं जगने लगे ,
अरमा दिल के मेरे
क्यों मचलने लगे ,

महका सा है समां
गाती है हर फ़िज़ा
अब सबर न रहा
मुझको ले चल हवा,
भीनी भीनी हवा
गुनगुनाती हवा
मुझको ले चल उड़ा |

--------------- निपुण पाण्डेय "अपूर्ण"

Read more...
कविता by निपुण पाण्डेय is licensed under a Creative Commons Attribution-Noncommercial-No Derivative Works 2.5 India License. Based on a work at www.nipunpandey.com. Permissions beyond the scope of this license may be available at www.nipunpandey.com.

  © Blogger templates The Professional Template by Ourblogtemplates.com 2008

Back to TOP