मुझको ले चल उड़ा..........
आज सुबह तकरीबन ३ बजे खिड़की पे बैठा हुआ था ......भीनी भीनी सी हवा बह रही थी ...कुछ झकझोर गई मन को और बहुत दिनों बाद कुछ पंक्तियाँ बन गई ......
सोंधी सोंधी हवा,
भीनी भीनी हवा,
प्यारी प्यारी सी हौले सुनो
सरगम गाती हवा,
मुझको छूती चले
रेशमी सी लगे
तार मन के हिले
कुछ कहे कुछ सुने
मनचली सी हवा
भीनी भीनी हवा
अम्बर में छाए जब
मेघा काले निराले मेघा ,
यूँ तू बहने लगी
कुछ तू कहने लगी ,
आस मन में मेरे
फिर से जगने लगी ,
और अब ना सता
मुझ को ले चल उड़ा ,
चुलबुली सी हवा
भीनी भीनी हवा ,
नभ में देखो जरा
चाँद है छुप रहा
तारे दिखते नहीं
मेघा बहके से हैं
परदा सब पे किए,
बहकी तू भी लगे
क्या तू गाती चले
गीली गीली हवा
भीनी भीनी हवा
ऐसा भीगा सा
मौसम है आया
राग मन में
उमंगो का छाया
चाहता हूँ उड़ूं ,
मैं भी बहता फिरूं
साथ ले चल मुझे
अपने संग ऐ हवा
बारिशों को लिए
उड़ती आई चली
भीगे तन मन मेरा
बांवरा बन चला,
ख्वाब सोये हुए
अब हैं जगने लगे ,
अरमा दिल के मेरे
क्यों मचलने लगे ,
महका सा है समां
गाती है हर फ़िज़ा
अब सबर न रहा
मुझको ले चल हवा,
भीनी भीनी हवा
गुनगुनाती हवा
मुझको ले चल उड़ा |
--------------- निपुण पाण्डेय "अपूर्ण"
3 टिप्पणियाँ:
बहोत ही बढ़िया दोस्त .. किसी फिल्म का गाना लग रहा है ... अच्छे मूड में लिखा है शायद :)
kya baat hai...utni serious nai hai jitni aur hua karti hai bahut lite mood main likhi hai ...prasanchit mann se...
this is gud one..........
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