बुधवार, 28 अगस्त 2013

खिलाफत चीख कर करता नहीं हूँ...

पिछले कुछ दिनों से ग़ज़ल के तकनीकी पहलुओं पर ध्यान दे कर ग़ज़ल लेखन का प्रयास कर रहा हूँ । सौभाग्यवश आदरणीय नीरज जी का मार्गदर्शन मिल रहा है । मैं तो शब्दों को जोड़ तोड़ कर बहर में ग़ज़ल कहने का प्रयास बस कर पाया था परन्तु नीरज जी ने ग़ज़ल का रूप दे दिया :


खौफ से बाहर कभी रहता नहीं हूँ  
खोल घर की खिड़कियाँ सोता नहीं हूँ

बात सच मिरची सरीखी बोलकर मैं
महफ़िलों में देर तक टिकता नहीं हूँ

लाख अपना हाथ देते लोग मुझको
चाह कर भी अब यकीं करता नहीं हूँ

दौर कितना भी भले आ जाय मुश्किल 
सामना करने से मैं डरता नहीं हूँ 

चाँद की हसरत भले है दिल में मेरे 
छोड़ कर अपनी जमीं, उड़ता नहीं हूँ
 
लेखनी करती बयाँ अब बात दिल की 
मैं खिलाफत चीख कर करता नहीं हूँ

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कविता by निपुण पाण्डेय is licensed under a Creative Commons Attribution-Noncommercial-No Derivative Works 2.5 India License. Based on a work at www.nipunpandey.com. Permissions beyond the scope of this license may be available at www.nipunpandey.com.

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