बुधवार, 28 अगस्त 2013

खिलाफत चीख कर करता नहीं हूँ...

पिछले कुछ दिनों से ग़ज़ल के तकनीकी पहलुओं पर ध्यान दे कर ग़ज़ल लेखन का प्रयास कर रहा हूँ । सौभाग्यवश आदरणीय नीरज जी का मार्गदर्शन मिल रहा है । मैं तो शब्दों को जोड़ तोड़ कर बहर में ग़ज़ल कहने का प्रयास बस कर पाया था परन्तु नीरज जी ने ग़ज़ल का रूप दे दिया :


खौफ से बाहर कभी रहता नहीं हूँ  
खोल घर की खिड़कियाँ सोता नहीं हूँ

बात सच मिरची सरीखी बोलकर मैं
महफ़िलों में देर तक टिकता नहीं हूँ

लाख अपना हाथ देते लोग मुझको
चाह कर भी अब यकीं करता नहीं हूँ

दौर कितना भी भले आ जाय मुश्किल 
सामना करने से मैं डरता नहीं हूँ 

चाँद की हसरत भले है दिल में मेरे 
छोड़ कर अपनी जमीं, उड़ता नहीं हूँ
 
लेखनी करती बयाँ अब बात दिल की 
मैं खिलाफत चीख कर करता नहीं हूँ

4 टिप्पणियाँ:

Unknown बुधवार, 28 अगस्त 2013 को 4:36:00 pm IST बजे  

मुकम्मल ग़ज़ल के लिए बधाइयाँ ....

sobi मंगलवार, 3 सितंबर 2013 को 2:13:00 pm IST बजे  

पांडेजी पूरे दो साल के बाद आपका ये प्रयास देखकर खुशी हुई :) .. और लिखते रहिए..
(अब इससे ज़्यादा शुध हिन्दी हमे नही आती :P)

वाणी गीत गुरुवार, 5 सितंबर 2013 को 1:12:00 pm IST बजे  

चीख कर खिलाफत करने का अंजाम देख लिया !!
अच्छी लगी ग़ज़ल !

Unknown बुधवार, 26 अगस्त 2015 को 11:26:00 pm IST बजे  

सुन्दर शब्द रचना .... बधाई
http://savanxxx.blogspot.in

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