गुरुवार, 31 दिसंबर 2009

नव वर्ष २०१० की शुभकामना

* आप सब को नवल वर्ष २०१० की हार्दिक शुभकामनाएं *


मुस्कान सभी अधरों पर छाये,
समग्र विश्व एक सुर में गाये ,
दीप ख़ुशी के जग में हों रोशन
नव वर्ष, सम्पूर्ण नवलता ले आये |

तम के गलियारे सारे जग के
जगमग हों अब शुभ्र ज्योति से
कोपलें सुमति की फूटें हरसू
धरा ज्ञान से जगमग हो जाये |

दूर क्षितिज से किरणे जो फूटें
नवल जोश का सबमें संचार करें,
हर एक आँगन में महकें खुशियाँ
'श्वेत' शान्ति का परचम लहराये |

जो गया, हो गया, उसे भूल कर
आँखें मसल, इस नव भोर में अब,
नव स्वप्न, निज पलकों में भर
सफलता के उत्कर्ष को सब पायें |

मिटें ये दूरियां, सबके दिलों की
भेद भी कोई हमारे अब न रह पायें ,
सीमायें हों दफ़न सारी अपनी जगह
वसुधा अब कुटुम्ब एक हो जाये |

परिंदों सी ऊँची, सब उड़ाने लगायें
अहम् से जुदा, सबको अपना बनायें,
मेरी कामना है इस नव वर्ष में सब
द्वेष को भूल, प्रेम की बगिया सजाएँ |

नव वर्ष की जो पहली सुबह आये
उषा की उज्जवल किरण, सबको जगाये,
सुखी हों , स्वस्थ हों , खिलें ख़ुशी से,
तन मन में सबके नव उमंगें भर जाये |



-------------- निपुण पाण्डेय "अपूर्ण"

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रविवार, 6 दिसंबर 2009

कब तक मेरा साथ दोगी ?

समय के भंवर को ,कठिन हर लहर को
तुम्हारे ही दम पे तरा हूँ , जिया हूँ,
लड़ा हूँ समय से ! जब चल पड़ा हूँ
हर पथ पे मेरे पथ की प्रदर्शक !

जीवन की गति की अनूठी है भाषा,
मन की तरंगों से अपनी उमंगों को,
मैंने छुआ है तुम्हारे ही दम से ,
सुप्त मन में तुम दीप्त हर पल !

स्वच्छंद हो कर विचरा कहीं भी ,
सहारे की लाठी तुम ही बनी हो ,
गिर कर उठा हूँ तुम्हारी बदौलत,
नव लय में मेरी हमेशा सहायक !

आशाओ मेरी !
कब तक मेरा साथ दोगी ?

------------------- निपुण पाण्डेय "अपूर्ण"

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बंद आँखें....

खुली आँखों से तो
दिखता है सब !
पर इन दिनों
बंद आँखों से
देख लेता हूँ
कहीं ज्यादा |

खुली आँखें !
दिखाती हैं सच |
और बंद आँखें ?
दिखा देती हैं
उस सच के भी भीतर,
शायद अपना सच |

सुना था बंद आँखें
देखती हैं स्वप्न ,
अवास्तविक और भंगुर !
लेकिन...
मेरी दुनिया है
बंद आँखों के भीतर
और सच्ची दुनिया !!
जहाँ मैं, मैं होता हूँ
सारे चोगे उतारकर
मैं !

ऑंखें खोल कर
देख पाया बस
मुट्ठी भर दुनिया,
मुट्ठी भर लोग,
और न जाने
कितने चेहरे, अपने ही |
किन्तु
मैं परखता हूँ
स्वयं को ,
इन बंद आँखों में |
मैं सजाता हूँ
अपरिमित संसार
हाँ , अपरिमित और अनंत !!

निरंतर बदलता
मेरा संसार ,
कोई छल नहीं !
कोई भ्रम नहीं !
मेरे लिए
मेरे जीवन का सच,
बंद आँखों के भीतर
मेरे स्वप्न , मेरी दुनिया !
मेरी खुशियाँ !
हाँ !
मेरा सच !


---------- निपुण पाण्डेय "अपूर्ण"

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