रविवार, 6 दिसंबर 2009

कब तक मेरा साथ दोगी ?

समय के भंवर को ,कठिन हर लहर को
तुम्हारे ही दम पे तरा हूँ , जिया हूँ,
लड़ा हूँ समय से ! जब चल पड़ा हूँ
हर पथ पे मेरे पथ की प्रदर्शक !

जीवन की गति की अनूठी है भाषा,
मन की तरंगों से अपनी उमंगों को,
मैंने छुआ है तुम्हारे ही दम से ,
सुप्त मन में तुम दीप्त हर पल !

स्वच्छंद हो कर विचरा कहीं भी ,
सहारे की लाठी तुम ही बनी हो ,
गिर कर उठा हूँ तुम्हारी बदौलत,
नव लय में मेरी हमेशा सहायक !

आशाओ मेरी !
कब तक मेरा साथ दोगी ?

------------------- निपुण पाण्डेय "अपूर्ण"

6 टिप्पणियाँ:

दिगम्बर नासवा रविवार, 6 दिसंबर 2009 को 6:08:00 pm IST बजे  

आशाओ मेरी !
कब तक मेरा साथ दोगी ?

मन में दीप जलाए रखें आशाए ज़रूर साथ देंगी ..........
उम्मीद जगाती .... सुंदर रचना ........

Alpana Verma रविवार, 6 दिसंबर 2009 को 7:09:00 pm IST बजे  

लड़ा हूँ समय से ! जब चल पड़ा हूँ
हर पथ पे मेरे पथ की प्रदर्शक !
bahut sundar bhaav hain.
sundar rachna likhi hai.

Unknown सोमवार, 7 दिसंबर 2009 को 11:29:00 am IST बजे  

aashayen hi jeevan ki vipreet paristhitiyo main jeene ki aas ko banaye rakhti hai..isliye ashayon ka saath kabhi na chorna ....bahut accha likha hai hamesha ki tarah...

Unknown सोमवार, 7 दिसंबर 2009 को 11:29:00 am IST बजे  
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
रश्मि प्रभा... सोमवार, 7 दिसंबर 2009 को 2:47:00 pm IST बजे  

स्वच्छंद हो कर विचरा कहीं भी ,
सहारे की लाठी तुम ही बनी हो ,
गिर कर उठा हूँ तुम्हारी बदौलत,
नव लय में मेरी हमेशा सहायक ! ....सुंदर रचना

मथुरा कलौनी बुधवार, 23 दिसंबर 2009 को 10:07:00 am IST बजे  

बहुत अच्‍छी लगी कविता। बहुत पाजिटिव ऊर्जा है।

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