सोमवार, 18 मई 2009

खामोश आवाज़.....

दिन भर, रात भर
सुबह से शाम
खेलता हुआ
गोद में
उछ्लते कूदते
असंख्य विचारों की

पाता हूँ कभी
खिलखिलाता हुआ
खुद को
और कभी
गुमशुदा
खुद को, खुद से

फिर गूंजती है
एक खामोश
बहुत खामोश सी आवाज़
और
वापस लौट पड़ता हूँ
उसी की और
न जाने
कहाँ से
कहाँ को
कहाँ तक.....

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रविवार, 3 मई 2009

ख्वाहिशें

१ . सुनती हैं ,बोलती हैं ,हंसती हैं ,रोती हैं
बेखौफ,बियाबां में,बस भटकती रहती हैं

खाव्हिशें क्यों इतनी अजीब होती हैं ?


२. लोग ख्वाहिशों पे क्यों लगाम नहीं बाँधते
हमेशा से इनकी उडाने लम्बी हुआ करती हैं

चाँद के बाद सूरज पे पहुँच, झुलस पड़ती हैं|

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शनिवार, 2 मई 2009

अफ़साने

१. ज़िन्दगी में ख़ुशी खोजते हैं सभी
कुछ आती हैं , कुछ आकर जाती भी

अफ़साने इसी तरह बना करते हैं |



२. कारवां चला करते हैं वक़्त के संग-संग
बहक पड़ते हैं कुछ पल ले के नए रंग

बहके रंग, पलों को अफसाना बना देते हैं |




३. भीड़ में मिलते हैं, गुजरते हैं हज़ार चेहरे
एक पल को थम जाते हैं कदम जो कहीं

अफ़साने वहीँ कुछ बन जाया करते हैं |

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कुछ लम्हे

वक़्त कट जाता है
उम्र गुज़र जाती है
लम्हे कुछ मगर
लम्हे ही रह जाते हैं,

अँधेरी रात में
भटकते जुगनू,
करीब जाओ
सिमट से जाते हैं,

जाने क्या है
तिलिस्म सा कुछ,
जो लगे अपने
बिखर से जाते हैं|

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कविता by निपुण पाण्डेय is licensed under a Creative Commons Attribution-Noncommercial-No Derivative Works 2.5 India License. Based on a work at www.nipunpandey.com. Permissions beyond the scope of this license may be available at www.nipunpandey.com.

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