क्यों डरे ....वो किससे डरे !
बहुत दिनों से कुछ ऐसी व्यस्तता हो गयी है कि चाह कर भी ब्लॉग पर आने ...कुछ लिखने ...कुछ पढने का समय ही नही निकाल पा रहा ......इसी बीच कई दिन पहले लिखी कुछ पंक्तियाँ दिख गई ....सोचा ब्लॉग पर पोस्ट कर दूँ....सन्नाटा थोडा लम्बा हो गया अब एक हल्की सी हलचल हो जाये....:)
इस उम्मीद के साथ कि बहुत जल्द फिर से वापस आऊंगा इस तरफ...:)
क्यों डरे ....वो किससे डरे !
मन की उड़ानों को जो भरे !
उमंगों के पर लगा के उड़े
चाहत की झोली भर के चले
क्यों डरे...वो किससे डरे ......
मन की उड़ानों को जो भरे !
अपने ही रस्ते चलना उसे
गम ना कोई वो फ़िक्र करे
सोचे जिधर वो चल दे उधर
बेशुमार जज्बे दिल में लिए !
क्यों डरे...वो किससे डरे ......
मन की उड़ानों को जो भरे !
अपनी ही धुन में चलता रहे
अम्बर तक पहुंचे उसकी उड़ाने
सागर से गहरे गोते लगे ,
हर पल की हंस के कहानी कहे !
क्यों डरे...वो किससे डरे ......
मन की उड़ानों को जो भरे !
------------- निपुण पाण्डेय "अपूर्ण"
6 टिप्पणियाँ:
अपनी ही धुन में चलता रहे
अम्बर तक पहुंचे उसकी उड़ाने
सागर से गहरे गोते लगे ..
सच है ... जब चलना है तो अपनी धुन में चलना चाहिए ... अकेले चलना हो तो भी चलना चाहिए ... अच्छा लिखा है बहुत ...
अपनी ही धुन में चलता रहे
अम्बर तक पहुंचे उसकी उड़ाने
सागर से गहरे गोते लगे ,
हर पल की हंस के कहानी कहे !
क्यों डरे...वो किससे डरे ......
मन की उड़ानों को जो भरे !
बढिया है .. सही है !!
pandey ji badiya likha hain :)
amber tak pahunche aapki udaane
सन्नाटातोडने के लिये यह अच्छी पंक्तियाँ है
अपनी ही धुन में चलता रहे
अम्बर तक पहुंचे उसकी उड़ाने
सागर से गहरे गोते लगे ,
हर पल की हंस के कहानी कहे !
क्यों डरे...वो किससे डरे ......
मन की उड़ानों को जो भरे !
सच में चलते रहने में ही जिंदगी में रवानगी है, देखो ठहरा हुआ पानी भी कहाँ पीने के काम आता है..
सुन्दर भावाभिव्यक्ति ..
हार्दिक शुभकामनाएं
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