शुक्रवार, 8 जनवरी 2010

बन-मक्खन

कल रात नींद नहीं आई
मन किया
बाजू वाले की रजाई खींच लूँ ,
बंद आँखों के साथ उसको
बिठा लूँ पीछे
बाईक पर!

खूँटी पर टंगी, बिस्तर पर पड़ी
अपनी या किसी की
पैंट कमीज की जेबें तलाशूँ
और
निकालूं कुछ १०-२० के नोट
भर लूँ कमरे के सारे चिल्लर
जेब में अपनी !

फिर निकल पडूं
सर्दी की रात के
अँधेरे में खिले हुए
घने कोहरे के बीच
फूट रहे उस सन्नाटे में !

चलूँ बस इतनी गति से
की बस बंद ना हो
इंजन !
घुर्र घुर्र
सरकती रहे बाईक
और बढ़ते रहें हम !

एक रौशनी तक
चौराहे की
मुंशी पुलिया के !
कुछ रिक्शे वाले , कुछ टेम्पो !
और एक ठेला चाय का!

गरमा गरम बन मक्खन
चाय के साथ !
फिर बैठा रहूँ कुछ देर!
पैसे गिनूँ जेब में !
फिर एक और बन मक्खन !

इस स्वाद के साथ
कब नींद आ गयी
पता ही नहीं चला !
सुबह उठा तो स्वाद भी चला गया !
चाय पी लेकिन
रात वाली नहीं थी !

वो कॉलेज की रातें थी !
बन मक्खन अब भी मिलता है
पर रात में कम निकल पाता हूँ ,
सुबह ऑफिस जाता हूँ अब !
बेफिक्री में उस श्रम के लेकिन
बन मक्खन का स्वाद अलग था !

-------------------------- निपुण पाण्डेय "अपूर्ण"

8 टिप्पणियाँ:

Abhay Joshi शनिवार, 9 जनवरी 2010 को 12:44:00 am IST बजे  

Iss kawita ko padne kay baad toh main yahi kahoonga ki life main jitna time college main bita sako utna accha hai... warna college ki chaar diwari kay bahar duniya bahut KAMINI hai... :)

Udan Tashtari शनिवार, 9 जनवरी 2010 को 4:17:00 am IST बजे  

कितना सच है वो स्वाद फिर कभी नहीं आता-न बातों का...न चीजों का!!

-सुन्दर रचना!

रश्मि प्रभा... शनिवार, 9 जनवरी 2010 को 10:52:00 am IST बजे  

wwah......koi lauta de wo din,wo kaagaz ki kashti wo baarish,wo sard mausam........

Pushpendra Singh "Pushp" शनिवार, 9 जनवरी 2010 को 11:48:00 am IST बजे  

बहुत सुन्दर रचना
बहुत बहुत आभार

दिगम्बर नासवा शनिवार, 9 जनवरी 2010 को 1:42:00 pm IST बजे  

आपने तो उस बन और पत्ती (हमारे ज़माने में दूध वाली चाय को पत्ती कहते थे ) की याद दिला दी ..........
डोर तक ले गये यादों की महफ़िल में .......... बहुत खूब ........

Unknown सोमवार, 11 जनवरी 2010 को 10:33:00 am IST बजे  

bahut khooob....wakai main college ke dino ki yaad taza ho gai...ek south indian college main padte hue maine bhi khoob sambhar vade khaye hai ...aaj bhi kaati hoon per woh swad wakai main kahi nahi hai.

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