सोमवार, 18 जनवरी 2010

दौड़........!!

दौड़ है !
दौडाए जा रहे हैं सब !
दौड़ रहा हूँ मैं भी,
अपनी मर्जी से नहीं !
लोग कहते हैं
कौन हैं लोग किसे पता ?
बस दौड़ना है इस तरफ ,
कौन है आगे किसे पता ?
क्यों दौड़ना है किसे पता ?

लेकिन पीछे तो हैं
सब
किसी ना किसी के !
दिखता कहाँ किसी को
अंत बिंदु,
पर
ये भूख कैसी !
खुश कोई नहीं !
फिर किस लिए ?

अगर मैं चाहूँ
रुक के सोचूं , फिर दौडूँ आगे,
नहीं !
नहीं मिलेगा मौका!
बहुत जोर है सबमे ,
धकेलते आये हैं , धकेल ही देंगे !
टूट रहा हूँ कहीं भीतर !

इस असंख्य भीड़ में
कई टूट जाते हैं
रुकने की कोशिश में
गिनती ही कहाँ !
किसी को फर्क नहीं पड़ता !

बाकी बचे
दौड़ते हुए छोड़ देते हैं
दुनिया !
बिना जाने
क्यों दौड़े थे ?
कुछ ही होते हैं,
जो दौड़ पाते हैं
दौड़ अपने मन की !
अपने ट्रेक पर !

क्या हो जायेगा ?
अगर मैं रुक गया !
दिख गया दूसरा रास्ता
अपनी ख़ुशी का मुझे !
लेकिन कोई सोचना ही नहीं चाहता !

ये 'लोग' भी
बड़े अजीब हैं !
पता नहीं कौन हैं ?

पर सब कहते हैं
'लोग' क्या कहेंगे ?
इसलिए
दौड़ो !
सोचो मत,
बस दौड़ो !

------------- निपुण पाण्डेय "अपूर्ण"

7 टिप्पणियाँ:

अजय कुमार मंगलवार, 19 जनवरी 2010 को 11:51:00 am IST बजे  

जीवन की आपाधापी का अच्छा वर्णन

दिगम्बर नासवा मंगलवार, 19 जनवरी 2010 को 1:36:00 pm IST बजे  

'लोग' क्या कहेंगे ?...

हमारे जीवन में बहुत कुछ ऐसा होता है ........ जो हम बार करते हैं सिर्फ़ इसी के बात के चलते ......... लोग क्या कहेंगे ...... रोज़मर्रा की कशमकश बयान करती अच्छी रचना ...........

रश्मि प्रभा... मंगलवार, 19 जनवरी 2010 को 1:41:00 pm IST बजे  

अंधी दौड़ में सब शामिल हैं, गिरने का दुःख भी नहीं, अपनी खुशियों की परवाह नहीं........पाना है उसको जिसके पीछे सब हैं.....झूठी जीत जो हासिल करना है

Murari Pareek मंगलवार, 19 जनवरी 2010 को 1:48:00 pm IST बजे  

दौड़ते जाइए !! लगता है मुंबई की लोकल ट्रेन की यात्रा करते वक़्त ये ख़याल आया है ! जो मोड़ दिया जिंदगी की तरफ बहुत सुन्दर रचना है !!!

कडुवासच मंगलवार, 19 जनवरी 2010 को 9:51:00 pm IST बजे  

... दौड ....दौड ...दौड.... बस दौड ही है ये जिंदगी .... सुन्दर रचना!!!!!

Alpana Verma बुधवार, 20 जनवरी 2010 को 12:28:00 am IST बजे  

जीवन चलने का नाम ही है...लेकिन आज कल की अंधाधुंध दौड़ का सही बखान किया है आप ने अपनी कविता में.

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