आखिरी अलविदा.....
कुछ देर, इक दिन या इक हफ्ता
बस !
यही कह कर गए थे न तुम ?
और ये उम्मीद जगी रह गई
वापसी की.......
शायद मुसलसल मिलती रही माफियाँ
बेफिक्र कर गई मुझको
खौफ ही न रहा, कि कोई
लकीर भी है हमारे दरमियाँ
शायद मैं ही न समझ पाया था
या दोस्ती
या फिर लकीरें
या फिर
भरोसा हो गया था
या तो खुद पर
या आप से जयादा तुम पर
पता नहीं किस पर !
काले बादलों के बीच निकल पड़ता है
चाँद जब, चमचमाते खंजर की तरह,
तुमने भी, कम से कम
इक हाथ निकाल के कह दिया होता
अलविदा !
हाँ !
आखिरी अलविदा ही सही
और काट दिया होता गला इन उम्मीदों का
उस खंजर से,
कि
अब झूठी उमीदों के साथ नहीं जिया जाता मुझसे !!
------------निपुण पाण्डेय "अपूर्ण"
4 टिप्पणियाँ:
bahut mushkil halaat hote hain jab ye pal aata hai jindagi main.......aur ye kavita us dard ko vastav main uthati hai...sarahniya prayas hai
अब झूठी उमीदों के साथ नहीं जिया जाता मुझसे !!
-क्या बाद है!! बहुत उम्दा तरीके से ज़ज्बातों को व्यक्त किया है! बधाई.
Hi,
Nipun,
When some one never says yes or no...means that person wants to play with you. When he/she wants to love you, they do. When they wants to hate you, they do. meanwhile d person who really do love some one, just gets Pain...Pain of Love...
Umeed aur aasha nirasha ke beech jina bahut dukhad hai
sach likha hai ki kaash haath hila kar alvida hi kaha hota
bahut sunder bhaav Nipun
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