आशियाँ दरख्तों पर बसाने चले हैं....
आशियाँ दरख्तों पर बसाने चले हैं
गुल कोई नया अब खिलाने चले हैं|
कभी कोई आये खयालो में जैसा
फिर समां आज वैसा बनाने चले हैं|
खुदा से ही पूछो कहाँ जायेंगे अब
खुद तो न जाने किस ठिकाने चले हैं|
सबर अब न है ना ही कोई उम्मीदें
आज खुद को ही हम आजमाने चले हैं|
सोचेंगे ना अब अंजाम-ए-सफ़र की
राह में मंजिलों को सजाने चले हैं |
भागते थे जो "निपुण" आप ही से
गीत दिल के वो अब गुनगुनाने चले हैं|
----------- निपुण पाण्डेय "अपूर्ण"
4 टिप्पणियाँ:
सबर अब न है ना ही कोई उम्मीदें
आज खुद को ही हम आजमाने चले हैं|
सोचेंगे ना अब अंजाम-ए-सफ़र की
राह में मंजिलों को सजाने चले हैं |
lajawab sher,bahut sunder badhai
सोचेंगे ना अब अंजाम-ए-सफ़र की
राह में मंजिलों को सजाने चले हैं |
-बहुत उम्दा मित्र. छाये हुए हो आप तो!! वाह!
Nipun,
too good & deep. keep writing...
bahut bahut dhanyawaad....:)
एक टिप्पणी भेजें