मंगलवार, 14 जुलाई 2009

ज़िन्दगी का सफ़र...

लम्बा तो बहुत ये ज़िन्दगी का सफ़र है
धूप है, छाँव है, ख़ुशी भी हर डगर है|

बैठ के दो पल जो करें इसका सामना
मुस्कुरा के देख यहाँ रंगीन हर सफ़र है|

मौसम हैं कई इस दुनिया में खुदा की
हर हाल में जीना है तू इंसान अगर है |

साकी मेरे पैमाने में कुछ रंग तो भर दे
मैखाना-ए-दिल में जो थोड़ी सी कसर है |

ग़म रोज़ हर एक मोड़ पे मिलते ही रहेंगे
उनमें भी ख़ुशी खोज जो जज्बा-ए-जिग़र है|

क्यों तेरी निगाहों में "निपुण" अश्क़ दफ़न हैं
हंस बोल जरा जिन्द तेरी नूर-ए-नज़र है|


--------- निपुण पाण्डेय "अपूर्ण"

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