गुरुवार, 2 जुलाई 2009

पागल ये मन

पगला ये मन
भटकता ही फिरे
जाने क्या आस है
कोई तो प्यास है
कुछ तलाश है
खोजता ही रहे
चाहे क्या ये पागलSSSSS
पगला ये मन .............

बैठा रहे कहीं
खोया सा गुम कहीं
जाने कुछ भी नहीं
चैन पल भर नहीं
भटके भटके पागलSSSSS
पगला ये मन ..........

चाहे इसको कभी
चाहे उसको कभी
पलके देखे कभी
खवाब झिलमिल सभी
बांवरा होने लगेSSSSS
पगला ये मन ..................

गुनगुन करता रहे
खुद से कहता रहे
देखे खुद को कभी
पूछे खुद से कभी
ताके धरती अम्बरSSSSS
पगला ये मन ..................

दूर कुछ तो दिखे
धुंधला सा वो लगे
मन्ज़िल उसको कहे
रास्ता पर ना दिखे
घूमे नगरी नगरीSSSSS
पगला ये मन
भटकता ही फिरे.................
पगला ये मन .................

------------------------- निपुण पाण्डेय "अपूर्ण"

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