पांडे बैठे कविता लिखने.....
थोडा हास्य लिखने का प्रयास किया | खुद पे ही लिखी है कविता | कुछ मित्रों ने मुझसे ऐसा बोला तो वही लिख पड़ा .....
पांडे बैठे कविता लिखने
बड़ी बड़ी कर देते बातें
कोई समझे, कोई न समझे
सबसे वाह वाह मांगत फिरते |
यार दोस्त सब कहने लागे
अब तो पांडे गयो पगलाय,
भरी जवानी, बम्बई में रह कर
कैसी कविता रहत सुनाय |
सारी दुनिया बांच दी तुमने
क्या क्या दियो अब सुनाय,
पांडे बस! कर बंद मुह अपना
कुछ प्यार पे न लिख्या जाय ?
पांडे भइया उलझे थोडा, सोचे
अब तो कुछ सोचा जाय ,
कोशिश करे , थोडा जोर लगाये
चलो दिलवा तक पहुंचा जाय|
पहुंचे गहरे दिल के अन्दर
सोचे, है का भीतर देखा जाय,
कुरेद कुरेद रहे अब दिल को,
रत्ती भर प्यार, सारा रहा मिमियाय !
आखिर में वो खुद से ही बोले
प्रेम न होवे , ना लिख्या ही जाय,
भइया मानो, पत्थर है दिलवा में अपने
कोई कोना रोमांटिक ना होय !
कोई कोना रोमांटिक ना होय
की भइया तबही हुए "अपूर्ण"
अनजाने में नाम धर लिए
सोचे आज जो समझे, एकदम सच्चा होय |
----------------निपुण पाण्डेय "अपूर्ण "
8 टिप्पणियाँ:
हास्य का मज़ा भी तब ही है जब खुद पे लिखा जाए
बहुत खूब!
अरे ! ये तो बढ़िया कविता बन गयी.....
कविता क्या है मन के भावों की अभिव्यक्ति ......कुछ ऐसे भाव जो हम कह नहीं पाते वो रोष बन कविता के रूप में निकलते हैं ....बस कोशिश होनी चाहिए उसे रूप देकर सजाने संवारने की ......!!
vangatyamak lehja wo bhi khud ko mukhatib karta hua accha lagta hai...
बहुत ही खूबसूरती से खुद को प्रस्तुत किया है......
वाह भई...नाम ‘निपुण’ और ब्लाग ‘अपूर्ण’..
ये बात कुछ हजम नही हुई।
अच्छी प्रस्तुति....बहुत बहुत बधाई...
अब भी देश मे हंसने की स्थितियाँ बची हैं !11
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