शनिवार, 15 अगस्त 2009

पांडे बैठे कविता लिखने.....

थोडा हास्य लिखने का प्रयास किया | खुद पे ही लिखी है कविता | कुछ मित्रों ने मुझसे ऐसा बोला तो वही लिख पड़ा .....

पांडे बैठे कविता लिखने
बड़ी बड़ी कर देते बातें
कोई समझे, कोई न समझे
सबसे वाह वाह मांगत फिरते |

यार दोस्त सब कहने लागे
अब तो पांडे गयो पगलाय,
भरी जवानी, बम्बई में रह कर
कैसी कविता रहत सुनाय |

सारी दुनिया बांच दी तुमने
क्या क्या दियो अब सुनाय,
पांडे बस! कर बंद मुह अपना
कुछ प्यार पे न लिख्या जाय ?

पांडे भइया उलझे थोडा, सोचे
अब तो कुछ सोचा जाय ,
कोशिश करे , थोडा जोर लगाये
चलो दिलवा तक पहुंचा जाय|

पहुंचे गहरे दिल के अन्दर
सोचे, है का भीतर देखा जाय,
कुरेद कुरेद रहे अब दिल को,
रत्ती भर प्यार, सारा रहा मिमियाय !

आखिर में वो खुद से ही बोले
प्रेम न होवे , ना लिख्या ही जाय,
भइया मानो, पत्थर है दिलवा में अपने
कोई कोना रोमांटिक ना होय !

कोई कोना रोमांटिक ना होय
की भइया तबही हुए "अपूर्ण"
अनजाने में नाम धर लिए
सोचे आज जो समझे, एकदम सच्चा होय |


----------------निपुण पाण्डेय "अपूर्ण "

8 टिप्पणियाँ:

राजीव तनेजा रविवार, 16 अगस्त 2009 को 1:13:00 am IST बजे  

हास्य का मज़ा भी तब ही है जब खुद पे लिखा जाए

शेफाली पाण्डे रविवार, 16 अगस्त 2009 को 9:19:00 am IST बजे  

अरे ! ये तो बढ़िया कविता बन गयी.....

हरकीरत ' हीर' मंगलवार, 18 अगस्त 2009 को 8:04:00 pm IST बजे  

कविता क्या है मन के भावों की अभिव्यक्ति ......कुछ ऐसे भाव जो हम कह नहीं पाते वो रोष बन कविता के रूप में निकलते हैं ....बस कोशिश होनी चाहिए उसे रूप देकर सजाने संवारने की ......!!

दर्पण साह बुधवार, 19 अगस्त 2009 को 5:19:00 pm IST बजे  

vangatyamak lehja wo bhi khud ko mukhatib karta hua accha lagta hai...

Unknown बुधवार, 26 अगस्त 2009 को 10:32:00 am IST बजे  

बहुत ही खूबसूरती से खुद को प्रस्तुत किया है......

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' रविवार, 13 सितंबर 2009 को 9:45:00 am IST बजे  

वाह भई...नाम ‘निपुण’ और ब्लाग ‘अपूर्ण’..
ये बात कुछ हजम नही हुई।
अच्छी प्रस्तुति....बहुत बहुत बधाई...

शरद कोकास बुधवार, 16 सितंबर 2009 को 4:18:00 pm IST बजे  

अब भी देश मे हंसने की स्थितियाँ बची हैं !11

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