मंगलवार, 11 अगस्त 2009

मैं चुप हूँ..

मैं चुप हूँ
बोलता था बहुत ,
कभी कभी तो
बहुत से भी थोडा ज्यादा,
लेकिन अब मैं चुप हूँ |

जब बोलता था
तो सब कुछ बोल देता था,
अब चुप हूँ
तो बस टटोलता हूँ,
टटोलता हूँ
कुछ खुद में ,
कुछ दूसरों में |

ज्यादा बोलना ही चुप कर गया एक दिन
महफिलों कि शान था कभी
और
लोगों कि हंसी की वजह भी कभी कभी

लेकिन अब टटोलता हूँ
मेरी हंसी
जो खुश कर दे मुझे भी ,
कभी खुद में, कभी दूसरे में
शायद कोई तो वापस कर दे
जो हंसी
मैंने दी थी उसको कभी .....

-------------------निपुण पाण्डेय "अपूर्ण"

4 टिप्पणियाँ:

निर्मला कपिला मंगलवार, 11 अगस्त 2009 को 9:50:00 pm IST बजे  

sundar bhaav hain vaise insan khud ko tatol le to bahut khushian paa sakata hai likhate raho aasheervad

निर्मला कपिला मंगलवार, 11 अगस्त 2009 को 9:50:00 pm IST बजे  

sundar bhaav hain vaise insan khud ko tatol le to bahut khushian paa sakata hai likhate raho aasheervad

Udan Tashtari मंगलवार, 11 अगस्त 2009 को 10:00:00 pm IST बजे  

खुद ही पाना होगी वो हँसी ..वापिस कोई नहीं करता मेरे मित्र.

जो तुमने बाँटी..वो दान था, उधार नहीं.

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