बुधवार, 22 अप्रैल 2009

जिंदगी...

जिंदगी... मैं हूँ ज़िन्दगी
जी ले तू जी ले मुझे थाम कर
कह दे मुझे तू कभी मुख्तसर
पर है ये लम्बा मेरा सफ़र

चाहा जो तूने मुझे
दो पल कभी जान कर
ग़म भी समेटे खड़ी मैं
खुशियो का डेरा भी मेरा सफ़र

रंग अपने हर पल बदलना
मेरी है फ़ितरत मगर ,
सतरंगी बनूँ, झिलमिलाती फिरूं
ख्वाहिश तू कर ले अगर

जब देखूं तारे, नज़ारे
छुपाये से चिलमन तले
गाने लगूं गुनगुनाने लगूं
पास आने को तेरे मचलने लगूं

ख्वाब देखे हैं तूने कई
कोशिश तो कर, कभी पा सकूँ
तेरे दिल को मिले फिर सुकूँ
भूलूं मैं ग़म, मुस्कुराने लगूं

ज़िन्दगी हूँ मैं कुछ इस तरह
पल पल की मैं हूँ रखती खबर
खुशियों को अपनी बस याद रख
ग़म को भुला, कर दे बेअसर

---------- निपुण पाण्डेय "अपूर्ण"

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