सवाल....
कभी किसी अँधेरी गुफा में देखा है
कैसे लटके रहते हैं चमगादड़
और
टोर्च से निकलते ही
एक जरा सी रौशनी
उड़ने लगते हैं अचानक
ना जाने क्यों ?
ना कोई मकसद,
ना कोई मंजिल,
बस उड़ते रहते हैं |
बंद होते ही टोर्च
फिर लटक पड़ते हैं
जैसे हैं, जहाँ हैं, वैसे ही !
कभी अकेले बैठा हुआ
उतरता हूँ मैं भी
एक अँधेरे तहखाने में
अपने भीतर |
दिख पड़ते हैं
असंख्य चमगादड़ 'सवालों' के
बेतरतीब लटके हुए,
मुझे देखते ही
उड़ने लगते हैं बेलगाम !
कोई पकड़ लेता है
किसी दूसरे की दुम,
कोई गिराने लगता है
तो कोई
खींचता है दूसरे को
कोई काटने लगता है ,
कुछ लम्बे होने लगते हैं
कुछ गायब भी !
अगले ही पल
एक हलचल होती है
बाहर ,
सब खामोश
लटक पड़ते हैं
मेरे बाहर आते ही |
ना जाने
इन सवालों की भी कैसी आदत है
हमेशा
लटके ही रह जाने की !
-------------- निपुण पाण्डेय "अपूर्ण "
6 टिप्पणियाँ:
मन में अक्सर उठाने वाले प्रश्नों का अच्छा चित्र प्रस्तुत किया है...बिलकुल नए बिम्ब....
bahut bahut bahut badhiyaa
जीवन के साथ कुछ चमगादड़ से सवाल हमेशा लटके रहते हैं ... लाइट से भी नही उड़ते ...
मंगलवार 06 जुलाई को आपकी रचना ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है आभार
http://charchamanch.blogspot.com/
बेहतरीन!
about me artical kafi badiya laga..
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