रविवार, 9 मई 2010

एक बूँद आत्मसम्मान...

अगर
है आपके पास
आत्मसम्मान की एक बूँद
तो कौन सी नयी बात है ?
हर कोई पैदा होता है
यहाँ तक कि जानवर भी
आत्मसम्मान ले कर ही |

क्यूँ हर बात पर
हर वजह की वजह में
हर उधडती मायूसी को
सीना चाहते हैं
आत्मसम्मान के गुण गान से!

जिंदा नही रख पाते सब
अपने भीतर |

आखिर क्यों रखें
क्या मिला है इससे
किसी को कभी भी
बस ! इतिहास में थोडा नाम
या दो चार लोगों की बातों में
एक हाथ जगह |

जब आप इसे बेच कर
देख सकते हैं सुकून के सपने
चार दिन चांदनी में
तो क्यों ना बेचें ?
जमा किया और
काम ही ना आया
तो संचय का अर्थ क्या ?

इसे बचा कर
क्या पा जायेंगे आप
बस !
अपनी नज़रों में जगह
वो भी डर डर कर
एक आधा इंच ....

अगर बेच खाएं आप
फिर तो संशय ही कहाँ
ना कोई भय
उपर नीचे उठने गिरने का !

वैसे तो
आत्मसम्मान से क्या होता है !
'प्रेक्टिकल' नही रहा अब

तो बेच खाइए !
लेकिन खत्म हो गया एक बार
तो
फिर क्या बेचेंगे आप ?

और फिर
रह ना जाएँ
'ना घर के ना घाट के' !

---------- निपुण पाण्डेय "अपूर्ण"

9 टिप्पणियाँ:

nilesh mathur रविवार, 9 मई 2010 को 3:40:00 pm IST बजे  

कमाल की रचना और भाव है, सचमुच आत्मसम्मान आजकल मर चुका है!

रश्मि प्रभा... रविवार, 9 मई 2010 को 8:10:00 pm IST बजे  

रह ना जाएँ
'ना घर के ना घाट के' !
khud hi kah diya bechne ke baad kya hoga , is aatm ko sahejna hi behtar hai

दिगम्बर नासवा सोमवार, 10 मई 2010 को 7:35:00 pm IST बजे  

वाह ... अनसुलझा सवाल छोड़ा है आपने ... पर आज आत्मसम्मान है किस के पास .....

sandhyagupta बुधवार, 12 मई 2010 को 10:45:00 am IST बजे  

..तो बेच खाइए !
लेकिन खत्म हो गया एक बार
तो
फिर क्या बेचेंगे आप ?

Solah aane sach.

नीरज गोस्वामी बुधवार, 12 मई 2010 को 1:19:00 pm IST बजे  

बेहतरीन पोस्ट है निपुण जी...वाह...आत्मसम्मान का मंथन इस तरह पहले शायद ही किसी ने अपनी रचना में किया हो...वाह...मेरी बधाई स्वीकार करें.
नीरज

hem pandey बुधवार, 12 मई 2010 को 9:50:00 pm IST बजे  

और फिर
रह ना जाएँ
'ना घर के ना घाट के' !
- इसी लिए जरूरी है आत्म सम्मान को बचाए रखना.

अमिताभ श्रीवास्तव गुरुवार, 13 मई 2010 को 6:05:00 pm IST बजे  

nipun bhai,
aatm samman aaj ke artho me sva (svarth)se nirmit he isliye..sab gadbad ho jaataa he.., jabki iska sach yah he ki aatma ka sammaan..aatm samman hotaa he..aour aatmaa he ki use kisi se kuchh kyaa lenaa denaa...he na virodhabhaas../ kher..achchi rachnaa..rachnaa me dharaapravaah kanhi kanhi chhoot jaataa he magar jo vyakt karnaa chah rahe ho aap, vo abhivyakti jaahir hoti he../

Ra रविवार, 16 मई 2010 को 5:26:00 pm IST बजे  

भाई निपुण आपने इस कविता को बड़े निपुणता के साथ लिखा है ..बहुत अच्छी बात कही है इसके माध्यम से ...बधाई स्वीकारे http://athaah.blogspot.com/

hem pandey सोमवार, 17 मई 2010 को 1:37:00 pm IST बजे  

आपके ब्लॉग 'घुमंतू' का यात्रा वृत्तांत पढ़ा और यह टिपण्णी देना चाहता था- 'सुन्दर यात्रा वृत्तांत और सुन्दर चित्र. काफल देख कर मुंह में पानी आ गया.'किन्तु लेख पढ़ने के बाद दुबारा वह पेज नहीं खुल पाया.

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