अर्थ जीवन का !!!
फिर आ गया हूँ
प्रश्न लेकर अपना पुराना
गतिमान मैं भी ,
जीवन भी मेरा
नए पथ , नूतन बसेरा |
प्रश्न मेरा आज भी है
किस तरफ पग चल पड़े हैं
क्या है अब इसका किनारा ?
मूंदता हूँ नेत्र अपने
खोलता जब पट घनेरे
दंभ भरता हूँ यकायक
मोह में किसके बंधा मैं ?
जान पड़ता अगले ही क्षण
नश्वर ये अभिलाषा है मेरी
क्षणिक बस ये रंग सुनहरे |
फिर नए पदचाप सुन
नए पथ के भ्रम में रत
नयी लय को झट पकड़
पग बढ़ाता एक
और फिर बस !
चल ही पड़ता अनवरत
किस दिशा में, कौन जाने?
छद्म के कोहरे में लेकिन
बूझता तब कोई मुझसे
पूछता या मैं स्वयं से
क्या लक्ष्य का संज्ञान मुझको ?
किस पथ का मैं पथिक |
इन तरंगों का अर्थ क्या
स्वार्थ इनमें लिप्त किसका
मुझमें जो उठती कभी हैं
फिर स्वयं बुझती सभी हैं ?
जीवन ये मेरा पथ अगर
क्या है इसका सच मगर
क्या लक्ष्य इसका 'अर्थ' है ?
इस कामना का अंत कब है ?
जड़ हुए हैं अब ये पग
विराम है, अब है चिंतन |
खोजनी है अब मुझे
परिभाषा अपनी !!
जानना है अब मुझे
अर्थ ,
जीवन का मेरे !!
----------------निपुण पाण्डेय "अपूर्ण "
6 टिप्पणियाँ:
kya likhte ho miyaan
mazaa aa gaya
बड़े ही सुन्दर शब्दों में मन की उहा-पोह को शब्दों में ढाला है , किसी न किसी दिन तो इंसान को ये सोच घेरती ही है कि हमारे होने का मकसद क्या है , और शायद यही सोच हमें जिन्दगी में कुछ मूल्यवान या कहो कि कुछ रचनात्मक करने को विवश करती है | रचना के लिए बधाई , हाँ ....सुनेरी को सुनहरी कर लें |
शब्दों ख्यालों के ख्वाबगाह जैसा लगा रचना को पढ़ते हुए
जान पड़ता अगले ही क्षण
नश्वर ये अभिलाषा है मेरी
क्षणिक बस ये रंग सुनहरे |
बहुत सुन्दर कविता है आप अपूर्ण कहां संपूर्ण हैं जिसने ये यान लिया कि* नश्वर है अभिलाशा मेरी क्षणिक बस ये रंग सुनहरे* वाह लाजवाब बधाई
जड़ हुए हैं अब ये पग
विराम है, अब है चिंतन |
खोजनी है अब मुझे
परिभाषा अपनी !!
जानना है अब मुझे
अर्थ ,
जीवन का मेरे .....
गहरी और शाश्वत सत्य ......... हर किसी को अपने जीवन के सत्य की तलाश है .......... इसी का नाम जीवन है ....
Bahut hi achchee lagi yah kavita.
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