आज मनावें गणतंत्र दिवस ...
गणतंत्र दिवस पर शुभकामनाओं और तंत्र को सुन्दर और स्वच्छ बनाने के लिए एक नयी शुरुवात के आवाह्न के साथ ....
आज मनावें गणतंत्र दिवस आओ कुछ सोचा जाय,
ख़ुशी के साथ जरा गुजरे पन्नो को पलटा जाए !
भारत की जो बात करो, भारी गणतंत्र याद आ जाय,
सबसे ज्यादा जनता, इतनी जनता का राज कहाय |
गणतंत्र ये बरसों पुराना, जनता का जब राज भयो ,
ईसा के पहले वैदिक जुग में भी जन को ही तंत्र भयो |
जन औ गण की बात ये कोई नयी ना होती भाई,
अपने वेदों में भी इन तंत्रों की महिमा गयी दिखाय |
आज वक़्त ने पलटी मारी, जनता को दियो सुलाय ,
देख देख जनता खुद कोसे, फिर निंद्रा में जाय समाय |
फिर सर्दी के मौसम में दिवस गणतंत्र ठिठुरता आय ,
हर साल तंत्र की गाथा देखो सिकुड़ी सिकुड़ी जाय |
घोटालों की बाढ़ जो आये जनता देखो बहती जाए ,
एक डाल पर एक घोटाला दूजे पे दूजा लटका पाय |
कोई अपना महल बनाये कोई हवा को कैश कराय,
अनंत तक देखो घोटालों की सुरंग दिए बनवाय|
कोई मंत्री करे है तंतर, मिल कोई खेले जंतर मंतर,
जनता की महिमा बस इतनी, एक तंत्री दियो बिठाय |
ऐसो मायावी गणतंत्र ये कैसो वख्त दियो दिखलाय ,
छिन्न भिन्न सब तंत्र ये कैसो वख्त दियो दिखलाय |
चूहे बिल्ली का सा खेल अजब ये ससुरे दिए बनाय,
एक जाए झंडा फहराने दूजा उ पर अपना रंग चढ़ाय |
आओ जुगत भिडाओ कोई , पहले इनको सफा कराय,
फिर आओ झंडे के नीचे गणतंत्र दिवस मनाया जाय |
------ निपुण पाण्डेय "अपूर्ण"
आज मनावें गणतंत्र दिवस आओ कुछ सोचा जाय,
ख़ुशी के साथ जरा गुजरे पन्नो को पलटा जाए !
भारत की जो बात करो, भारी गणतंत्र याद आ जाय,
सबसे ज्यादा जनता, इतनी जनता का राज कहाय |
गणतंत्र ये बरसों पुराना, जनता का जब राज भयो ,
ईसा के पहले वैदिक जुग में भी जन को ही तंत्र भयो |
जन औ गण की बात ये कोई नयी ना होती भाई,
अपने वेदों में भी इन तंत्रों की महिमा गयी दिखाय |
आज वक़्त ने पलटी मारी, जनता को दियो सुलाय ,
देख देख जनता खुद कोसे, फिर निंद्रा में जाय समाय |
फिर सर्दी के मौसम में दिवस गणतंत्र ठिठुरता आय ,
हर साल तंत्र की गाथा देखो सिकुड़ी सिकुड़ी जाय |
घोटालों की बाढ़ जो आये जनता देखो बहती जाए ,
एक डाल पर एक घोटाला दूजे पे दूजा लटका पाय |
कोई अपना महल बनाये कोई हवा को कैश कराय,
अनंत तक देखो घोटालों की सुरंग दिए बनवाय|
कोई मंत्री करे है तंतर, मिल कोई खेले जंतर मंतर,
जनता की महिमा बस इतनी, एक तंत्री दियो बिठाय |
ऐसो मायावी गणतंत्र ये कैसो वख्त दियो दिखलाय ,
छिन्न भिन्न सब तंत्र ये कैसो वख्त दियो दिखलाय |
चूहे बिल्ली का सा खेल अजब ये ससुरे दिए बनाय,
एक जाए झंडा फहराने दूजा उ पर अपना रंग चढ़ाय |
आओ जुगत भिडाओ कोई , पहले इनको सफा कराय,
फिर आओ झंडे के नीचे गणतंत्र दिवस मनाया जाय |
------ निपुण पाण्डेय "अपूर्ण"
2 टिप्पणियाँ:
यह तो शानदार दोहो में गढ दिया है..बहुत खूब। यह विधा भी आपमें हैं..अच्छा लगा पढकर।
इत्मिनान से पढने में और मज़ा आयेगा..। कटाक्ष और व्यंग्य दोहों में हमेशा से ही रहते हैं और यह सटिक भी बैठते हैं। इसमे महारत जिसे है उसकी अलग पहचान होती है क्योंकि आजकल दोहों से कट गये हैं लोग..। मेरी शुभकामनायें
भाई वाह क्या बात है ..बहुत दिनो बाद लिखी लेकिन क्या खूब लिखी, गणतंत्र दिवस पर इतनी बडिया, सटीक कविता देने का शुक्रिया और नये रूप में ये और भी सुंदर लग रही है.
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