शनिवार, 6 दिसंबर 2008

अभी तो भोर है सफर की...

यह कविता हिंद युग्म पर भी प्रकाशित है |
http://kavita.hindyugm.com/2008/10/nipun-pandey-very-first-poem.html

आज कुछ अलग है,
पहले भी हलचल थी
पर दबा दी गई|
शायद वो क्षणिक ही थी,
पर आज कुछ अलग है,
वेदना तीव्र है,
कुछ भय सा भी है,
कुछ बेबसी है,
मन क्षुब्ध सा है,
धमनियो में विद्रोह है,
कुचल रहा हूँ ,
फ़िर भी कहीं
निराशा का स्वर है,
पर अभी तो भोर है सफर की ,
फ़िर ऐसा क्यों है ......


मन में ऊहापोह है,
विचारो में उथल-पुथल है ,
भावनाओ का सागर उफान पर है,
भय है कहीं
किनारों को काट न दे,
मेरा कुछ अंश
बह न जाये,
मैं, मैं न रह जाऊँ,
फ़िर कहीं
मैं अकिंचन
इन सब की तरह
निर्जीव न बन जाऊँ,
और अपनी तरह
लोगों के चेत को बस
जाते हुए देखता न रह जाऊँ|

नहीं बनना मुझे निर्जीव,
नहीं खोना है मुझे
मेरे किसी अंश को,
विद्रोह है कहीं
पर अब नहीं दबाऊंगा उसे ,
इस मोड़ पर आकर
फ़िर कुचलना नहीं है इसे,
अब नहीं भागूँगा इससे,
अब कुछ करना ही होगा,
प्रश्न को हल करना ही होगा|

आज टाला गर इसे
बात ख़त्म न होगी,
फ़िर नासूर बन कर उभरेगी ,
आज विचार करना ही होगा ,
सही और ग़लत का,
अंतर में समाना ही होगा,
प्रश्न का उत्तर
खोजना ही होगा ,
पूर्ण हल
जाने बिना जाने न दूँगा,
फ़िर इसे आने न दूँगा.......
इस सफर की साँझ तक
फ़िर इसे आने न दूँगा.......
इस सफर की सांझ तक ........

---------- निपुण पाण्डेय "अपूर्ण"

कविता by निपुण पाण्डेय is licensed under a Creative Commons Attribution-Noncommercial-No Derivative Works 2.5 India License. Based on a work at www.nipunpandey.com. Permissions beyond the scope of this license may be available at www.nipunpandey.com.

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