जीवन पथ...
जब से पैदा हुआ
चला जा रहा है
किधर जा रहा है
नहीं जानता है
बस जा रहा है
क्या चाहता है
नही जनता है
चला जा रहा है
जाना उसको कहाँ है
अपनी मंजिल कहाँ है
बस चला जा रहा है
जिया जा रहा है
जीवन ये पथ है
बस यही जानता है
जिया जा रहा है
जिया जा रहा है
कुछ पाने की आशा
बढ़ा जा रहा है
पर पाना है किसको
नही जनता है
बस चला जा रहा है
जिया जा रहा है
सोचता है एक पल
मिलेगी वो मंजिल
पर है क्या वो मंजिल
उसे क्या पता है
थमता है पल भर
ग़लत जा रहा है
इधर देखता है
उधर देखता है
सब जा रहे हैं
फ़िर चला जा रहा है
जिया जा रहा है
मिलेगा कभी गर
समय चार पल का
सोचा है सोचेगा
मन का रस्ता किधर है
खुशी का वो इक पल किधर है
दुनिया के मेले मैं
लोगों के रेले मैं
इतना मौका कहाँ है
कि सोच पाए किसी दिन
फ़िर चला जा रहा है
जिया जा रहा है
जीना है 'गर तो
आगे बढ़ते ही जाना है
आगे का मतलब
उसे क्या पता है
आगे बदना जो समझा
वो पीछे ही भागा
किसके पीछे वो भागा
कहाँ जानता है
फ़िर भगा जा रहा है
जिया जा रहा है
हैं सब भागते वो
भी भगा जा रहा है
कि पूछे किसी से
कहाँ जा रहा है
न उसको पता है
जो उसके है आगे
न उसको पता है
जो पीछे चला है
बस चला जा रहा है
जिया जा रहा है
पथिक एक ऐसा
इधर आ रहा है
देखो उसे फ़िर
चला जा रहा है
क्या जीवन का मतलब
समझ पा रहा है
क्या पथ की नियति को
समझ पा रहा है
किसे खोजता है
किधर खोजता है
बस चला जा रहा है
जिया जा रहा है
'ग़र न आज भागे
तो दुनिया के ताने
वो जिम्मों का बोझा
अपने सर पे लिए है
ख्वाबों को अपने
सिरहाने दबा के
किसके ख्वाबो के पीछे
चला जा रहा है
जिया जा रहा है
कभी पूछता है
वो ख़ुद से क्या
उसको मंजिल पता है
तभी देखता है
पिछला पथिक भी
बढ़ा जा रहा है
अगले ही पल
फ़िर चला जा रहा है
जीया जा रहा है
कभी सोचता है
समय ग़र मिले तो
वो अगले से पूछे
कहाँ जा रहे सब
क्यों वो जा रहा है
कहाँ जा रहा है
तभी देखता है
पिछला आगे निकल जा रहा है
फ़िर बढ़ा जा रहा है
जीया जा रहा है
----- निपुण पाण्डेय "अपूर्ण"
2 टिप्पणियाँ:
भाई ने अच्छा लिखा है.
कविता और तुकबंदी एकदम मस्त है.
"मुह की बात सुने हर कोई,दिल के दर्द को जाने कौन.
आवाजो के बाजारों में खामोशी पहचाने कौन"
यथार्थ लिखा है....
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