खोये खोये...........
खोये खोये से रहते हो , क्या पाने की तुम्हें आस है
ना ख़ुद को खोना ,ना ख़ुद से खोना..
फ़िर भी खोना ..
इसमें भी कुछ बात है ....
दूर खड़ी हो मीलों मंजिल फ़िर उसमें खो जाना
ये भी क्या एहसास है ...
मैं नीलगगन की पंछी हूँ, ये मील तो मेरे पास हैं
ख़ुद से खोना, ख़ुद को खोना ...ये सबका अंदाज़ है
ख़ुद में खोकर देख जरा
कुछ है बाकी, जो ना तेरे पास है ?
सोच अगर कुछ यूँ हो जाता
सब खो जाते .
हाँ मैं, हाँ तू ,हाँ हाँ हम सब
कुछ कर जाने की आस में
जग मेरा ये गुलशन ही ना बन जाता
----------- निपुण पाण्डेय "अपूर्ण"
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