खाली सा है कुछ कहीं..................
कुछ कमी है मुझ में ही .....लगता है कुछ और हो .......एक छोटा सा कुछ जिसके बिना में अधूरा सा लगता हूँ ......पर पता नहीं वो क्या है ...........................
खाली सा है कुछ कहीं
जाने दिल मैं ही है
जाने मन मैं कहीं
पर कुछ तो है ही कहीं
चाहता हूँ मैं कुछ
सोचता हूँ मैं कुछ
करता भी हूँ कभी ...
फ़िर भी खाली सा है कुछ कहीं
सूना सूना सा है
मन का ये कारवां
चलता रहता है यूँ
गाता रहता है क्यों
फ़िर भी खाली सा है कुछ कहीं
सोचता रहता हूँ
खोजता रहता हूँ
है वो क्या , क्यों है गुम सा कहीं
फ़िर भी खाली सा है कुछ कहीं
मन के भीतर ही है
छुप गया सा कहीं
या फ़िर मुझसे अलग जा गिरा है कहीं
वो जो खाली सा है कुछ कहीं
सोचता हूँ है क्या
था जो मुझ मैं कभी
है क्या अब भी वहीँ
फ़िर भी लगता मुझे
कोई कोना है जो मुझ मैं खाली कहीं
ये भरम तो नहीं
ना छलावा कोई
लगता है कुछ मिले, और भर दे उसे
जो कुछ भी मुझ मैं खाली कहीं .....
वो है क्या, ना पता
खोज लूँ मैं उसे, गर पता ये चले
है वो जीता कोई या अचर है कहीं
जिसकी कमी सी है उर मैं कहीं...
आज फ़िर खोजूंगा
हिय मे गोते लगा
शायद बैठा मिले
मुझसे खफा, कोप में वो वहीँ
मान जाए तो भर दूँ उसे
खाली कोने में, मुझ में है जो कहीं.....
---------------- निपुण पाण्डेय "अपूर्ण"
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