ठहराव...
कोई अब्र बरसा होता
कोई घटा छाई होती
कुछ और नहीं
तो बस
कोई बिजली कहीं
कौंध पड़ी होती
समय के इस
चक्र को
निरंतर गतिमान
रहना ही था
जानता था मैं
फ़िर भी
कुछ हलचल हुई होती
कहीं मुझ मैं ही
कोई स्पंदन तो होता
कोई लहर
उठ पड़ी होती
चाहे
परिणित हो जाती
किसी तूफ़ान में
पर, समय
मुझसे जयादा बलवान था
वो गुजर तो गया
पर आज भी
किसी हवा के साथ
पलट जाता हूँ कभी
कुढ़ पड़ता हूँ
स्वयं से ही
शिशु की तरह
वो ठहराव था
कुछ पल का
जो थोड़ा लंबा हो गया
पर खुश हूँ आज
वो ठहराव
जीवन का
आख़िर गुजर तो गया .
------------ निपुण पाण्डेय "अपूर्ण"
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