एक कशमकश मन में ..............
उलझने ख़ुद यूँ ही
आपस में उलझी हुई सी
बातें हजारो दिल में
ख़ुद से अनकही सी
कुछ सवाल साये में अपने
अपना ही ज़वाब खोजते
कुछ भरम ऐसे भी जो
चाह कर भी न टूटते |
तिशनगी ऐसी रगों में
कुलबुलाती खुदबखुद
खामोशियाँ तो बेजुबां
पर पूछती इनका सबब
कुछ बगावत है कहीं तो
इन सवालो के दरमियाँ भी
कुछ तो अपनी उलझने हैं
कुछ जवाबो की बेबसी भी
आस ऐसी कुछ मचलती
राख भी मानो सुलगती
कुछ हकीक़त ख्वाब अपने
कर गुजरना चाहती
------------ निपुण पाण्डेय "अपूर्ण"
3 टिप्पणियाँ:
uljhane kyo sulajhti nahi hai
jeevan ki dhoop me aashaye jhulasti rahi hai
kyo abr aata nahi hai
dil ki kaliya murjha si rahi hai
meri tippani kaisi lagi zaroor bataye
अरे इमाम साहब आपने तो कमल कर दिया
इन टिप्पडी को जोड़ के तो कुछ कमाल बन जाएगा सर जी
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