क्या थे तुम, क्या हो गए.....
नाराज़ हो कि बस
अंदाज़-ऐ-गुफ्तगू बदला है
आज़ वो बात नहीं
हमने कल को टटोला है
क्या थे तुम, क्या हो गए
पूछो ज़रा अब आप से
कुछ यकायक हो गया
हुआ ज़ाहिर बदले मिजाज़ से
तुम समझते ही रहे
हमसे छुपा ले जाओगे
हम भी बस सोचा किए
फ़िर लौट आ ही जाओगे
पर अभी मन खीझता है
देखकर इस छद्म को
आज तुम बेपर्दा कर दो
अपने मन के द्वंद को
------------ निपुण पाण्डेय "अपूर्ण"
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