सौरभ भइया ...............
कुछ पंक्तियाँ हमारे दोस्त सौरभ भाई के लिए :
आओ मिलाये एक शख्श से
ये अपने सौरभ भइया
सोच समझ कर ही करते
सब कुछ अपने सौरभ भइया
फ्रेंच कटे की दाढी इनकी,
उसपे दाल चिपकती रहती
घंटो घंटो शेव बनाते
पर टेडी की टेडी रहती
भूख कभी इनको ना लागे
पर पेट नहीं ये सागर इनका
कभी कहीं भी कुछ दिख जाए
बच ना सकता एक भी तिनका
दिन दिन भर ये फैले रहते
ख्वाब हजारो बुनते रहते
कहते हमसे सोये हैं ये
पर पैर हमेशा हिलते रहते
वैसे तो ये हम सब जैसे
बात सभी ये सब सी करते
पर जो मिल जाए कोई लड़की
बदल जाते ये पलक झपकते
ना जाने ऐसा क्या हो जाता
काबू ख़ुद पे ना रख पाते
लड़की देख बदलते हैं ये
बचपन से ही, ख़ुद ही कहते
कपट नहीं, ना कोई द्वेष है दिल में
सबसे अच्छी बातें करते
पर अन्दर कुछ तो है इनके
कोई ना जाने, क्या सोचते रहते
मूड अगर हो अच्छा इनका
खर्चा ऐसा, ज्यूँ राजा जग के
पर जब सब कुछ हो जाता
पछताते, ये क्या कर बैठे ?
सोच समझ ये सब कुछ करते
पर सोच कभी ना पाते
जो सब कहे ऐसा प्लान बना है
पहला जवाब ना में ही देते
कुछ बातें ऐसी भी इनमें
जो जमीन से जुड़े ये लगते
सोने जाते तो गद्दे में होते
सुबह, गद्दा छोड़ फर्श पे मिलते
अपने टिक्कू , सौरभ भाई की
कुछ ऐसी है मस्त कहानी
माफ़ करो, हम दोस्त ही ठहरे
कुछ ग़लत हुआ 'गर मेरी जुबानी ......
--------------- निपुण पाण्डेय "अपूर्ण"