उलझन
आज फिर वही
वही अनसुलझे सवाल
वो पहेलियाँ सी उड़ती हुई
पतंगों की तरह,
जेहन को फिर एक बार
कर देंगी तार तार
फिर होगा वही
शायद वही कुछ
मस्तिष्क जूझता हुआ
अपने तंत्र में
खोजता सा कुछ
भटकता रह जाएगा|
---------- निपुण पाण्डेय "अपूर्ण"
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1 टिप्पणियाँ:
मनोभावो को सुन्दर शब्द दिए है॥बधाई।
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