जीवन क्या है...
ग़ज़ल लिखने के मेरे प्रयास का दूसरा कदम....
जीवन क्या है एक ना एक दिन जानना पड़ता है
खोने पाने का हर मौसम सबको काटना पड़ता है |
सुन्दर सुर्ख नहीं हो जाते यूँ ही सारे गुलाब
कोपल छोड़ उन्हें कांटो में खिलना पड़ता है |
वक़्त के दरिया में से बहकर निकले जो
खुशियों और दुखो को उन, अपनाना पड़ता है |
जीवन के इन खेलों में, जीतना चाहे मुमकिन हो,
खुश होकर कुछ मौको पर हार भी जाना पड़ता है |
वक़्त हमें सिखला देता है जीने के सारे अंदाज़
बस सीखों को अपना बना कर गले लगाना पड़ता है |
गर्दिश-ए-दौराँ हर मोड़ पे मिलते हैं "निपुण"
जज्बा-ए-दिल हो गर तो उनको जाना पड़ता है |
-------------- निपुण पाण्डेय "अपूर्ण "
1 टिप्पणियाँ:
prayas to kafi aacha hai sir jii keep it up gud going
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