नयी सुबह....
नयी सुबह
किरणों में ओज
अनोखा ,
पलकों में दस्तक
नए नवेले ख्वाबो की,
कदम
लबालब जोश से
दौड़ जाने को बेताब,
पिंजडे से छूटा पंछी
निकल पड़ा हो जैसे
छू लेने बादलो को |
आशाये,
बसंती कोपलों जैसी
लिपटी हुई
नए चोगे में,
थिरक रही हैं
उंगली ले हाथो में
इन ख्वाबो की
मन ये पागल
खडा किनारे
देख रहा है ,
कर बैठेगा
कुछ अगले ही पल ,
बरसों से था
इंतजार में
इसी सुबह के,
शायद पा ले
अब कुछ
अगले ही पल
नई सुबह में ....
-------------- निपुण पाण्डेय "अपूर्ण "
3 टिप्पणियाँ:
धन्यवाद
क्या बात है मेरे दोस्त ... पहली ही बाल पे छक्का मर दिया तुमने .. मस्त गझल लिखी है ..
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