मैं....
मैं ख़ुद अपनी ही ख्वाहिश हूँ
मैं ख़ुद अपना ही मुंसिफ़ हूँ
मैं कश्ती हूँ , मैं दरिया हूँ
मैं ही अपना नजरिया हूँ
मैं जिन्दा हूँ तो मैं ही हूँ
जो मर जाऊँ तो मैं ही हूँ
विजेता हूँ तो मैं ही हूँ
पराजित भी मैं ख़ुद से हूँ
मैं मालिक हूँ, मसीहा हूँ
मेरा क़ातिल भी मैं ही हूँ |
------------------- निपुण पाण्डेय "अपूर्ण"
2 टिप्पणियाँ:
WAH WAH
अच्छा विश्लेषण किया है स्वयं का ..
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