हिंदी
हिंदी दिवस के अवसर पर सभी लोगों को हिंदी दिवस की शुभकामनाएं........ कुछ पंक्तियाँ आधुनिक हिंदी के अब तक के सफ़र पर ....
हिंदी , जन जन की भाषा है
कैसे बनी आज राजभाषा है
हिंदी का कैसे विस्तार हुआ
आधुनिक हिंदी का आकार हुआ ?
हिंदी है हमको जोड़ रही
एक सूत्र में हमको पिरो रही
इसकी भी अजब कहानी है
पर दुनिया इससे अनजानी है
भाषा ना बात विवाद की है
ये बात तो बस संवाद की है
कैसे जन्मी कैसे फिर पली बढ़ी
सोचो! हिंदी से एका कैसे बढ़ी ?
एक अलग ना यह भाषा हिंदी
भाषाओँ का तो मेल है हिंदी
"हिंदी" शब्द की गर बात कहो
फारसी से तुम शुरुवात कहो |
ईसा से कई सदी पहले , जब
वैदिक संस्कृत उपजी थी तब
फिर पाली निकली संस्कृत से
और प्राकृत निकली पाली से
फिर मानव विकास से साथ बढ़ी
ईसा के समय की ये बात बड़ी
पाली भाषा का जब विस्तार हुआ
अपभ्रंशों ने अपना आकार लिया
हिंदी, सिन्धी हो या पंजाबी हो
हो मराठी या फिर बंगाली हो
गुजराती भी आसामी, उड़िया भी
जननी सबकी बस पाली ही |
फिर मिली फारसी हिंदी के संग
उर्दू हिंदी का एक हुआ जीवन
वो समय था हिन्दुस्तानी भाषा का
दौर वो उर्दू - हिंदी की एका का
फिर हिन्दुस्तानी के दो रूप हुए
हिंदी और उर्दू जब अलग कहे |
देवनागरी लिखो , हिंदी कह दो
फ़ारसी में लिख , उर्दू कह दो |
तो सार यहाँ बस इतना है
सबकी जननी तो एक ही है
हैदराबादी हो या बम्बइया हो
हिंदी हिंदी में सब एक रहो !
मोरीशश चलो या सूरीनाम चलो
फिजी, गयाना या नेपाल कहो
हिंदी दुनिया में इतनी फ़ैल गई
एक तार में सबको जोड़ रही |
तुम कहते हिंदी भारत से दूर हुई
मैं कहता दुनिया में देखो फ़ैल रही
हिंदी अपनी, भविष्य की भाषा है
दुनिया में फैलेगी इसकी गाथा है
हिंदी का इतना ह्रदय विशाल हुआ
बढती ही रही, कोई भी काल हुआ
आओ हम भी इसमें एक हाथ लगें
हिंदी बोलें, हिंदी में कुछ बात करें |
आओ हिंदी को आबाद करें ,
हिंदी में थोड़ी बात करें ! हिंदी में थोड़ी बात करें !
हिंदी , जन जन की भाषा है
कैसे बनी आज राजभाषा है
हिंदी का कैसे विस्तार हुआ
आधुनिक हिंदी का आकार हुआ ?
हिंदी है हमको जोड़ रही
एक सूत्र में हमको पिरो रही
इसकी भी अजब कहानी है
पर दुनिया इससे अनजानी है
भाषा ना बात विवाद की है
ये बात तो बस संवाद की है
कैसे जन्मी कैसे फिर पली बढ़ी
सोचो! हिंदी से एका कैसे बढ़ी ?
एक अलग ना यह भाषा हिंदी
भाषाओँ का तो मेल है हिंदी
"हिंदी" शब्द की गर बात कहो
फारसी से तुम शुरुवात कहो |
ईसा से कई सदी पहले , जब
वैदिक संस्कृत उपजी थी तब
फिर पाली निकली संस्कृत से
और प्राकृत निकली पाली से
फिर मानव विकास से साथ बढ़ी
ईसा के समय की ये बात बड़ी
पाली भाषा का जब विस्तार हुआ
अपभ्रंशों ने अपना आकार लिया
हिंदी, सिन्धी हो या पंजाबी हो
हो मराठी या फिर बंगाली हो
गुजराती भी आसामी, उड़िया भी
जननी सबकी बस पाली ही |
फिर मिली फारसी हिंदी के संग
उर्दू हिंदी का एक हुआ जीवन
वो समय था हिन्दुस्तानी भाषा का
दौर वो उर्दू - हिंदी की एका का
फिर हिन्दुस्तानी के दो रूप हुए
हिंदी और उर्दू जब अलग कहे |
देवनागरी लिखो , हिंदी कह दो
फ़ारसी में लिख , उर्दू कह दो |
तो सार यहाँ बस इतना है
सबकी जननी तो एक ही है
हैदराबादी हो या बम्बइया हो
हिंदी हिंदी में सब एक रहो !
मोरीशश चलो या सूरीनाम चलो
फिजी, गयाना या नेपाल कहो
हिंदी दुनिया में इतनी फ़ैल गई
एक तार में सबको जोड़ रही |
तुम कहते हिंदी भारत से दूर हुई
मैं कहता दुनिया में देखो फ़ैल रही
हिंदी अपनी, भविष्य की भाषा है
दुनिया में फैलेगी इसकी गाथा है
हिंदी का इतना ह्रदय विशाल हुआ
बढती ही रही, कोई भी काल हुआ
आओ हम भी इसमें एक हाथ लगें
हिंदी बोलें, हिंदी में कुछ बात करें |
आओ हिंदी को आबाद करें ,
हिंदी में थोड़ी बात करें ! हिंदी में थोड़ी बात करें !
----- निपुण पाण्डेय "अपूर्ण "
1 टिप्पणियाँ:
लगे रहो।
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