ख्वाहिशें
१ . सुनती हैं ,बोलती हैं ,हंसती हैं ,रोती हैं
बेखौफ,बियाबां में,बस भटकती रहती हैं
खाव्हिशें क्यों इतनी अजीब होती हैं ?
२. लोग ख्वाहिशों पे क्यों लगाम नहीं बाँधते
हमेशा से इनकी उडाने लम्बी हुआ करती हैं
चाँद के बाद सूरज पे पहुँच, झुलस पड़ती हैं|
1 टिप्पणियाँ:
प्रिय मित्र
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अखिलेश शुक्ल्
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