खामोश आवाज़.....
दिन भर, रात भर
सुबह से शाम
खेलता हुआ
गोद में
उछ्लते कूदते
असंख्य विचारों की
पाता हूँ कभी
खिलखिलाता हुआ
खुद को
और कभी
गुमशुदा
खुद को, खुद से
फिर गूंजती है
एक खामोश
बहुत खामोश सी आवाज़
और
वापस लौट पड़ता हूँ
उसी की और
न जाने
कहाँ से
कहाँ को
कहाँ तक.....