चल दिये चल दिये...... ..
चल दिये चल दिये
ख्वाब दिल में लिए,
सूखा सागर तो था
फ़िर भी बहते गए |
ख़ुद पे बस था यकीं
राहें सूनी मिली ,
मंजिलों तक सफर
कुछ कठिन ही सही |
कदम खामोश थे
खुश्क थे रास्ते ,
कोई उम्मीद थी
बढ़ चले आसते |
ये भी सोचा नहीं
राह है किस तरफ़,
हर कदम था पता
चाह थी उस तरफ़ |
कहने को बस यही
कुछ तो मिल जाएगा,
सुनते थे बस वही
तू न कुछ पायेगा |
कुछ मिले ना मिले
मज़िलों का पता ,
होगा बस ये गुमाँ
कर दिया, सोचा था |
रुक के 'गर जो कहीं
पीछे देखा कभी ,
होगा गम तो नही
चाहा बस, किया नहीं |.
--------- निपुण पाण्डेय "अपूर्ण"
5 टिप्पणियाँ:
Toooo good ....
this one goes right on top of my favourite list...
way to go :)
क्या बात है गुरु !! बहुत खूब !!
हाँ .. वैसे काफ़ी घटनाए बीत चुकी है इस बीच ;).. तो शायद मै समझ सकता हूँ की ये कविता किस मासिक स्थिथि में लिखी गई है ;)
nice one yaar ....
Perfect description of the feelings of a youngster searching for his/her path of life...
No matter wht others think bt v shud keep gng ahead to fulfill our motive...
this is wht i understood 4rm ur lines...
एक अच्छा प्रयास किस्सी भी संघर्षरत व्यक्ति की मानसिक sthiti को बताने का,
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