स्वयं को जान पाना समंदर में गोता लगाकर मोती खोजने जितना कठिन है । शायद स्वयं की ही पूरी समझ न होना ही वजह रही होगी जब खुद को अपूर्ण कह गया । बचपन उत्तराखंड में हिमालय की वादियों में बसे एक छोटे से कस्बे चम्पावत में गुज़रा फिर अनेक शहरों में किताबों और जिंदगी से सबक सीखते सीखते आज दाने पानी के लिए मुंबई आ बसा हूँ | कविताओं से हमेशा से ही अपनापन सा रहा | कब तो याद नहीं मगर कभी पढ़ते पढ़ते कुछ लिख भी बैठा हूँगा | तब से मन की हलचलों को शब्दों में सजाने की कोशिश करता रहता हूँ ...
कभी सोचता हूँ मैं नहीं लिखता तुमको, तुम लिख देती हो मुझे, मेरे मन को, इन हलचलों को आकार देती हो, वर्ना भटकती फिरती जो कहीं, शायद तुम मेरी हो मैं तुम्हारा और तुम्हारे बिन मैं अपूर्ण |