रे मन...
मन रे !
तोरी ना थाह मिले ...
मन रे !
तोरी ना थाह मिले ,
भटक भटक कर
कौन दिशा में
कौन से रास्ते
मन रे ...
तोरी ना थाह मिले
जो मन की सुनो
जो मन की कहो
तो जान लो ये मन
नाच नचाये
ये तो दिखलावे
खेल नए और
अजब अनूठे
मन रे!
तोरी ना थाह मिले
कभी मुसकाये
हँसते हँसाते
गाता ही जाए
फिर क्यों नम ये
ओस सा गुमसुम.
मन की नगरिया
का नित मौसम
रंग भरा भी और बेरंगा
मन रे !
तोरी ना थाह मिले ...
कोई ना जाने
कोई ना समझे
जो बूझे तो
उलझा उलझा ही जाए
मन के भरोसे
बैठे कोई कैसे
अनबूझी सी
एक पहेली ,
जो
बूझे सो पछताय
मन रे !
तोरी ना थाह मिले ....
................. निपुण पाण्डेय "अपूर्ण "
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तोरी ना थाह मिले ...
मन रे !
तोरी ना थाह मिले ,
भटक भटक कर
कौन दिशा में
घूम घुमाये कौन डगरिया
फिर मुड़ मुड़ जावे कौन से रास्ते
मन रे ...
तोरी ना थाह मिले
जो मन की सुनो
जो मन की कहो
तो जान लो ये मन
नाच नचाये
ये तो दिखलावे
खेल नए और
अजब अनूठे
मन रे!
तोरी ना थाह मिले
कभी मुसकाये
हँसते हँसाते
गाता ही जाए
फिर क्यों नम ये
ओस सा गुमसुम.
मन की नगरिया
का नित मौसम
रंग भरा भी और बेरंगा
मन रे !
तोरी ना थाह मिले ...
कोई ना जाने
कोई ना समझे
जो बूझे तो
उलझा उलझा ही जाए
मन के भरोसे
बैठे कोई कैसे
अनबूझी सी
एक पहेली ,
जो
बूझे सो पछताय
मन रे !
तोरी ना थाह मिले ....
................. निपुण पाण्डेय "अपूर्ण "