सवाल....
कभी किसी अँधेरी गुफा में देखा है
कैसे लटके रहते हैं चमगादड़
और
टोर्च से निकलते ही
एक जरा सी रौशनी
उड़ने लगते हैं अचानक
ना जाने क्यों ?
ना कोई मकसद,
ना कोई मंजिल,
बस उड़ते रहते हैं |
बंद होते ही टोर्च
फिर लटक पड़ते हैं
जैसे हैं, जहाँ हैं, वैसे ही !
कभी अकेले बैठा हुआ
उतरता हूँ मैं भी
एक अँधेरे तहखाने में
अपने भीतर |
दिख पड़ते हैं
असंख्य चमगादड़ 'सवालों' के
बेतरतीब लटके हुए,
मुझे देखते ही
उड़ने लगते हैं बेलगाम !
कोई पकड़ लेता है
किसी दूसरे की दुम,
कोई गिराने लगता है
तो कोई
खींचता है दूसरे को
कोई काटने लगता है ,
कुछ लम्बे होने लगते हैं
कुछ गायब भी !
अगले ही पल
एक हलचल होती है
बाहर ,
सब खामोश
लटक पड़ते हैं
मेरे बाहर आते ही |
ना जाने
इन सवालों की भी कैसी आदत है
हमेशा
लटके ही रह जाने की !
-------------- निपुण पाण्डेय "अपूर्ण "