पहली वर्षा............
पवन एक मदमस्त आई
मेघ को तब याद आई
गगन का अभिमान टूटा
धरा को वरदान जैसा
प्यासी पड़ी कुम्हला गई थी
व्याकुल जमीं ऐसी हुई थी
जब मेघ गर्ज़न कर उठे
फिर विटप पादप खिल उठे
धरा कुछ यूँ मुस्कुराई
अमृतमयी जब फुहार आई
घनन घन घन मेघ गरजे
झिमिर झिम झिम फिर जो बरसे
कुछ इस तरह से जब हुआ
वर्षा का पहला आगमन
वो था बरसता ही गया
मन ये बहकता ही गया
टिप टिप थी हर सू हो रही
हर ओर बूंदे झर रही
नृत्य करता सा मगन था
तृप्त अब हर इक नयन था
मस्त सी जब रुत ये आई
हिय की कली फ़िर खिलखिलाई
मन बाँवरा सा हो रहा
अब झूमता ही जा रहा |
----------------------------- निपुण पाण्डेय "अपूर्ण "